बुधवार, 12 मई 2010

विधवा

सुना-गुना -
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विधवा - काली का एक नाम विधवा भी है ..
एक समय बहुत क्रोध में वे संहार कर रहीं थीं. देवगण घबरा गए .अनेक उपाय किए पर उनका क्रोध शान्त नहीं हुआ .अंत में सहकाल शिव से विनती की गई कि वे अपनी पत्नी का वेग रोकें .
शिव सामने आए पर क्रोध में महाकाली उन्हें भी चबा गईँ.विश्व में हाहाकार मच गया .देवता और सप्तर्षि एक साथ मिल कर अनुनय-विनय करते सामने लेट गए .तब भगवती को ध्यान आया कि वे क्या कर बैठीं.उन्होंने तत्काल शिव को मुँह से उगल दिया .तभी से उनका एक नाम विधवा हो गयी .यह नाम बड़ा शुभ शब्द माना जाता है.
प्रतीक रूप में इस कथा का अर्थ है मृत्यु को भी खा जानेवाली .महाकाल की धरातल पर लेटी हुई शक्ति पर महशक्ति खड़ी है .महाकाल की छाती पर जीभ फैलाए कह रही है -आओ अपने संस्कार हमें अर्पित करो ,मैं उन्हें खा जाऊँगी .,तुम्हें मोक्ष दूँगी .
तुम्हें महाकाल से क्या डर!वह तो मेरे पैरों के नीचे पड़ा है .मैं तुम्हें अमर कर दूँगी .पहले अपने पाप-ताप-लोभ मेरे हवाले करो
उनके बाएँ हाथ में नर-मुण्ड है और रक्त भूमि पर नहीं खप्पर में गिर रहा है .
वे उसे पान कर लेंगी .दाहिना एक हाथ ऊपर उठा अभय-दान कर रहा है .
पर नीचे का खुला है कह रहा है -मेरी शरण में आओ,नीचे पड़े हुए महाकाल को देखो -मैं जनम और मृत्यु से छुटकारा दे रही हूं .
(कन्नड़ के कवि मधुन्ना ने अपने ग्रंथ-अद्भुतरामायण में युद्ध के प्रसंग में महाकाली के द्वारा ही रावण का विनाश करवाया है .धरती माता के कण-कण से तेज काली के रूप में प्रत्यक्ष हो कर रावण के विनाश का कारण बना.)
'जो भ्रान्ति और बुद्धि,तृष्णा और तुष्टि ,निद्रा और चैतन्य जैसे विरोधी ध्रुवोंकी अद्वैत इकाई व्यक्त हुई उस माँ से भी बड़ी कोई ईश्वरी. विभूति नहीं हो सकती .
जो माँ है ,चाहे वह जगदम्बा ,हो जननी हो ,जन्मभूमिहो या जन्म देनवाली हमारी माँ हो उसी केके ये विपरीत ध्रुव पिघल कर हमारा कल्याण करते हैं .
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शिव क्यों नाचते हैं ?

(सुना-गुना)
शिव क्यों नाचते हैं ?
जिसमें जीवन और मृत्यु का संतुलन बना रहे .
नृत्य रुका सृष्टि समाप्त.वह सिर्फ़ प्रलय-नृत्य नहीं है ,जो तभी होता है जब उन्हें क्रोध आता है .उन्हें अकारण क्रोध नहीं आता ,अक्षम्य होने पर ही आता है .और फिर विनाश का ताँडव-भूकंप,बाढ़.युद्ध.महामारी .
उनके डमरु-नाद से जीव के अंदर आत्मा प्रवेश करती है ,चरणों की थाप से धरती अन्न-मूल-फल उगाती है.वे ही हैं नृत्य-कला के प्रारंभ कर्ता.वैद्य परंपरा के प्रथम आचार्य-महाभिषग.
वे वनों में मात्र साधना नहीं करते नृत्य और गायन के प्रथम आचार्य हैं.नृत्य-शास्त्र का जन्म उन्हीं के पैरों की थाप और होथों की मुद्राओं से हुआ.उनका नृत्य विनाशकारी नहीं सृजन का है.
वे परम योगी हैं-पर घर -गृहस्थी के बीच रह कर,पत्नी-पुत्रों के साथ उन्हें भरपूर प्यार देते हुए .भोग और योग का अद्भुत संगम है.
दिगंबर हैं शिव.सृष्टि को स्थिरता देने वाली शक्ति हैं दिक्-वही उनका वस्त्र है .जीवन-दायिनी गंगा को शिर पर धरते हैं ,फिर भी वे संपूर्ण मानव हैं -काशी ,उज्जयिनी,हरद्वार जैसी नगरियाँ उन्हीं की बसाई हुई है .मस्तमौला हैं .डट कर मद्य-सेवन करते हैं.ज्ञानी इतने कि तंत्र-विद्या के जनक भी वही हैं.(श्यामा तंत्र पहला तंत्र है जो शिव ने रचा.)विष को भी पी जाने वाले .
बैल -कृषि-प्रधान सभ्यता का प्रतीक है ,इसीलिए जीवन के बहुत समीप हैं .हमारे हितैषी हैं.धरती केा सर्वनाश करने पर तुली महाकाली के चरणों में लेट कर उन्हें शान्त कर देते हैं .
वे पशुपतिनाथ हैं.-वनों और वनचरों की हत्या के नितान्त विरुद्ध .
सारे आगम उन्हीं ने रचे हैं इसीलिए वे महेश्वर कहलाए .वे सृष्टि की स्थिति के देव हैं
जगत का आदि कारण ही शिव की इच्छा और क्रिया ही उनका निरंतर नृत्य है ,जिसके लय-ताल-थाप से धरती में जीवन का संचार होता है ..

मंगलवार, 11 मई 2010

सफ़ाई

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मेरी नातिन बड़ी सफ़ाई पसन्द है ।
एक बार की बात है मेरा कंघा नहीं मिल रहा था ।वह बोली ,'नानी मेरा ले लीजिये ।'
'ढूँढ रही हूँ अभी मिल जायेगा ,जायेगा कहाँ !'
' मुझे पता है आप किसी के कंघे से बाल नहीं काढतीं ।मेरा बिल्कुल साफ़ रखा है ।आपने उस दिन ब्रश से साफ़ किया था ,तब से वैसा ही रखा है ।'
'क्यों तुम उससे बाल नहीं काढ़तीं ?'
'मैं तो मम्मी के से काढ़ लेती हूँ , मेरा कंघा हमेशा बिल्कुल साफ़ रखा रहता है ।'
इसे कहते हैं सफ़ाई !
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एक बात बताऊँ

'मम्मी एक बात बताऊँ?'
हाँ, हाँ ,बताओ ।'
'किसी से कहेंगी तो नहीं ?'
मम्मी ने कौतुक से देखा -इतना छोटा लड़का कौन सी प्राइवेट बात कर रहा है जो किसी से कहने की नहीं !
'नहीं !'
'वो जो लल्लू है न ,उसके पापा दरवाज़ा बंद कर के घर में झाड़ू लगाते हैं ,'जैसे किसी की पोल खोल रहा हो ऐसे स्वरों में बोला ।
'अच्छा !', उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया ।
'हाँ ,और जब उसकी मम्मी-पापा में झगड़ा हो जाता है तो रोटी भी बनाते हैं ।'
'अरे ,तुम्हें कैसे मालूम ?'
'उसी ने बताया .लल्लू ने ।और कहा तुम किसी से कहना मत ।मम्मी तुम, किसी से मत कहना ।'
'नहीं मैं क्यों कहूँगी किसीसे ।'
'और बतायें ?'
'हाँ,हाँ ।'
'वो लोग अपने घर में अंडा और मीट भी खाते हैं ।'
'तो क्या हुआ ?हमारे घर में भी तो बनता है ।'
'नहीं वो लोग ,चुपके से खाते हैं ,किसी को बताते नहीं ।हम आमलेट ले गये थे तो लल्लू ने माँगी और कहा किसी से कहना मत ।'
'अच्छा !'
मम्मी,तुम किसी से कह मत देना ,उसने बिल्कुल मना कया है ।'
'नहीं ,बिल्कुल नहीं ।मैं क्यों कहूँगी ?'
अपना रहस्य मुझे सौंप कर वह निश्चिंत सो गया है ।
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माताजी से मत कहना


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इन्टर कॉलेज में पढ़ा रही थी उन दिनों .
हम छः-सात बराबर की टीचर्स थीं बस,दो-तीन साल की छुटाई-बड़ाई रही होगी .यही बीस-बाईस की उम्र .
सब प्रिन्सिपल से खीझी रहतीं थीं -अच्छी पटरी बैठती थी हमलोगों में .शादी हममें से दो की ही हुई थी एक रमा जी को छोड़ कर बाकी सब उम्मीदवारी में थीं .
रमा जी रमा जी जी - ज़रा मोटी और देखने में साधारण , अट्ठाइस पार कर गईं थीं ,तीन छोटी बहिने पढ रहीं थीं .कहतीं थीं मुझे शादी नहीं करनी ,इन लोगों की करवानी है .सादे जीवन में विश्वास करनेवालीबहुत आदर्शवादी महिला थीं .
हमलोगों मे किसी की ज़रा जबियत खराब हो जाये तो लेक्चर झाड़ने लगतीं थीं -'अरे सबसे बड़ी चीज़ है संयम .इन्सान संयम से रहे तो हमेशा स्वस्थ रहे .और हम दोनो विवाहिताओं के सामने ब्रह्मचर्य का महत्व बखानते थकती नहीं थीं .ब्रह्मचारी रहो तो शरीर में शक्ति बनी रहती है .जरा सी मेहनत पड़े तो ये नहीं कि थके जा रहे हैं . चेहरे पर तेज रहता है और मन हमेशा प्रसन्न .दवा की कभी जरूरत ही न पडे और भी जाने क्या - क्या .
हम दोनो को को उनकी लेक्चरबाज़ी सुहाती नहीं थी .पर क्या करते एक तो उम्र में बड़ी ,फिर उनकी बातें नाना पुराण -निगमागम सम्मत .विरोध कर नहीं सकते .खिसयाहट तो लगती ही जैसे हम पापी ,अनाचारी हों .फिर हम भी बोलने लगे .
जरा उनकी तबियत नासाज़ होती , हम फौरन घेर लेते ,'रमा जी ,क्या हो गया ?आप तो बाल-ब्रह्मचारी हैं फिर कैसे ढीली पड़ गईं .शारीरिक ब्रह्मचर्य का महत्व है पर मानसिक उससे भी ज्यादा असर डालता है .आजकल क्या मन में कुछ ऐसा-वैसा ,सोचती रहती हैं ?
दूसरी कहती , 'हाँ मन को जीते बिना सब बेकार .हम लोगों की संगत का आप पर कोई खराब असर तो नहीं पड़ने लगा ?'
वे बेचारी दोनों ओर से घिर जातीं ,साथ की टीचर्स मज़े लेती हँसती रहतीं
'आप सावधान रहिये , मन को कस के नियंत्रण में रखे रहिये .'
कभी उनसे समाधान मांगते 'पता नहीं ,सिर में दर्द क्यों होने लगा !हम तो एक हफ़्ते से ब्रह्मचारी हैं .'
'पति टूर पर गये लगते हैं ' दूसरी और जोड़ देरी ,' और चार दिन से तो हम भी ...'
बाकी साथिने हँसी रोकतीं -और रमा जी आँखें तरेरतीं .हम बेशर्मों पर कोई असर न होते देख लाचार झेंपी हुई सी मुस्करा कर अपनी खिसियाहट छिपा लेतीं .
इधर कुछ दनों से परेशान थीं .
'क्या हो गया आजकल आप चिन्तित लगती हैं .''
'इधर कुछ दिनों से अम्माँ की तबीयत खराब चल रही है .'
' अरे ,अम्माँ तो बहुत एक्टिव थीं ..क्या हुआ है ?'
'बताती तो हैं नहीं .कुछ दिनों से सिर में दर्द रहता था अब बहुत बढ़ गया .टेस्ट कराये हैं .'
हम लोगों को सुनकर दुख हुआ पर ललिता चुप न रह सकी उसने जड़ दिया , ' रमा जी, आप तो आदर्शवादी हैं .बेलाग बात कहने की हिम्मत है आपमें . पर हमलोगों से आप चाहे जो कुछ कह लीजिये ,माताजी से ये सब मत कहियेगा .'
घड़ों पानी पड़ गया हो जैसे उन पर रमा जी एकदम चुप ! धीरे से वहाँ से खिसक लीं .'
अब सोचती हूँ ,हमें उन्हें से ऐसी बेतुकी बातें नहीं करनी चाहिये थीं .उनकी अपनी मजबूरियाँ थीं ,
चार छोटी बहनें ब्याहने को ,पिता रिटायर हो चुके थे .पर तब इतना सब सोचने की ताब कहाँ थी अब सोचती हूँ तो लगता है- घर-बाहर के साथ वृद्ध होते माता-पिता और अन-ब्याही बहिनों की जुम्मेदारी उठाती रमा जी पर कितना बोझ पड़ता होगा. आदर्शवाद के आवरण में अपने को बहलाये रखना और ऊपर से हमलोगों की बातें सुनना उन पर क्या बीतती होगी.
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एक नमूना

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' क्यों डॉ.राय ,' मंजु ने आवाज़ दी ,'पिछली बार तो आपने लड़कों को वाक-आउट करा दिया था कि पेपर आउट ऑफ़ कोर्स जा रहा है ,एकदम बेतुका... !
डॉ राय चलते से रुक कर खड़े हो गये हम काहे को कराते लड़कों ने कहा तो हमने भी अपनी राय दे दी ।'
' इस साल तो आपके छात्र परम संतुष्ट होंगे ,आपका सेट किया हुआ पेपर जो था ।'
'डॉ मंजु ,वह किस्सा भी सुन लीजिये - लड़के पेपर दे कर निकले तो हम बड़े खुश-खुश उनके पास पहुँचे ।
सोचा था बहुत संतुष्ट होंगे ।हमने पूछा ,'क्यों अबकी बार पेपर कैसा रहा ?'
'जी सर ,पता नहीं किस हरामी ने सेट किया था ,ढंग के क्वेश्चन ही नहीं फँसे ।'
दूसरा बोला ,' एक्ज़ामिनर साला ,भाँग खा के बैठा होगा ।अरे हर खंड के कुछ खास कोश्चन होते हैं वह गधा उन सबको चर गया ,भाषा ही बदल डाली ।समझ में आता क्या खाक ! '
 'कमाल है ,' हमारे मुँह से निकला और
एक सम्मिलित ठहाका वातावरण में गूँजने लगा ।
यह है विश्वविद्यालय के छात्रों का एक नमूना ।
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