tag:blogger.com,1999:blog-1961251703549212605.post5933117108288246787..comments2023-10-16T04:02:23.836-07:00Comments on भानमती का कुनबा: दोषी हम ही हैंप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-1961251703549212605.post-6840704427598604852011-01-28T12:25:53.566-08:002011-01-28T12:25:53.566-08:00''गुणों के वर्णन में वह दोषों को भी विशेषत...''गुणों के वर्णन में वह दोषों को भी विशेषताओं और गुणों के रूप में दिखाना चाहता है या उनके उल्लेख से ही कतरा जाता है ..''<br /><br />बहुत सटीक कहा प्रतिभा जी,<br />.....जी खुश हो गया ये पढ़कर....सही को सही और गलत को गलत कहना तो आना ही चाहिए......<br /><br />वास्तव में धर्म वो तराजू है..जिस पर आप गुण दोषों को नाप तौल सकते हैं...बहुत लाज़मी है...जो बात मेरे लिए धर्म कि दृष्टि से सही हो....वो आपके लिए एकदम गलत उसी दृष्टिमें..<br />और फिर गुणों को खुली आँखों से दोषों के संग स्वीकारना ही चाहिए...मगर ज़रूरी नहीं वे आत्मसात किये जाएँ.......<br /><br />''धर्म में तो ऐसा होता है जब कि यह पात्र का दोष है धर्म का नहीं''<br /><br />वाह ! एक और अच्छी बात कही.... कई बार बिना बात का ही अफसाना बना दिया जाता है ...ईद के शुभ अवसर पर अपनी घनिष्ठ मुस्लिम सहेली के घर रुकना हुआ भोपाल में....वहां पहली बार 'कुर्बानी' के दृश्य सुने...ह्रदय बड़ा व्यथित हुआ....पूरा फ्रिज नॉन-वेज से भरा हुआ.....बता नहीं सकती कैसे दिन कटा वहां.....तुरंत दूसरे दिन हॉस्टल पहुंची......और अखबार,किताबें , इंटरनेट की सहायता से पता किया......कि ये क़ुर्बानी के पीछे वास्तविक कारण क्या है.......इतनी जीव हत्याएं....कैसे किसी धर्म में justify की जा सकतीं हैं... अंत में सार निकला...कि हज़रत मोहम्मद जी को अपनी किसी ''प्रिय वस्तु'' का त्याग करना था......जो उन्होंने अपने बेटे में पायी........अब गौर फरमाईयेगा...यहाँ ''प्रिय'' वाला concept लोग भूल गए और ''पुत्र'' याद रखा...सो एक मासूम जीव को मात्र ३-४ दिन के लिए खरीदकर.....बेटा सा बनाकर क़ुर्बान करके रीति निभा लेते हैं.......जैसा पैगम्बर साहब ने किया......मगर भावना भूल गए......:(<br />करना ये चाहिए कि उपरवाले के लिए अपनी प्रिय चीज़ें त्यागें......एक शराबी के लिए ये शराब हो सकती है...सिगरेट हो सकती है......एक ससुर अपनी बहुओं को अनावश्यक परदे से मुक्ति दे सकता है..वगैरह वगैरह !!<br /><br />''एक तो तमाम रूढियाँ,बाह्याचार ,और थोपी हुई मान्यताएं धर्म के नाम पर घुस आई हैं और मूल भावना को आच्छन्न कर लिया है .''<br />ये हर धर्म में है ...हर जगह.....:( वैसे भी भारत में धर्म के नाम पर आप करोड़ों रूपए और लोगों को जमा कर सकते हैं<br /><br />खैर...कहते हैं और बहुत जगह padha है.....bhakti में pravesh करते samay buddhi त्याग deni hoti है........kab kahan कैसे क्यूँ??? ये chhodna padta है...शायद ये बहुत aage की बात हो gayi है......:)ise yahin rokti hoon....:(<br /><br />मगर आस्था की चादर में गलत बातों को छुपा लेना भी भूल ही है.......<br /><br />मैं पूर्णत: सहमत हूँ आपके इस लेख से......और भी नयी बातें जानने को मिलीं...जानी हुई बातों को कहने का तरीका देखा......बहुत ही अच्छा लेख है.......<br /><br />आपके इस लेख के 'समापन' को कुछ कहना चाहती हूँ......:).....ये कि ,'' बाबरी मस्जिद के विवादास्पद फैसले के बाद भी देश में शांति रही......और एक वो दिन थे...कार सेवाके बाद के...भोपाल ..रायसेन के दंगे......जो मेरे बचपन ने अपनी आँखों से देखे...मगर बिसराए नहीं......<br /><br />hmm वक़्त करवट ले रहा है.......नईं कोंपलें फूट चुकीं हैं दिलों में.....पुराने पीले पड़े पत्तों की तरह रूढ़ियाँ भी स्थान छोड़ेंगी.......ऐसा होगा मगर एक लम्बी प्रतीक्षा के बाद......मगर होगा ज़रूर.......आमीन !!<br /><br />बधाई आपको सार्थक लेखन के लिए !!Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1961251703549212605.post-20666347723631864202010-08-17T00:31:04.745-07:002010-08-17T00:31:04.745-07:00बिलकुल सच्ची बात की आपने प्रतिभा जी, काफी दिनों बा...बिलकुल सच्ची बात की आपने प्रतिभा जी, काफी दिनों बाद आपकी पोस्ट पड़ी | आपके विचार बहुत अछे हैं, जिनसे आपकी उच्च शिक्षा का पता चलता है .....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1961251703549212605.post-88816689020106435262010-08-12T23:04:51.461-07:002010-08-12T23:04:51.461-07:00काश कुछ धर्मांध लोग भी आपके लेख को पढ़ कर, अपने &q...काश कुछ धर्मांध लोग भी आपके लेख को पढ़ कर, अपने " सुज्ञान " का मर्म जान सकें ! शुभकामनायेंSatish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com