tag:blogger.com,1999:blog-1961251703549212605.post8224194466884351903..comments2023-10-16T04:02:23.836-07:00Comments on भानमती का कुनबा: माताजी से मत कहनाप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-1961251703549212605.post-56469675675153771402011-02-26T09:55:40.020-08:002011-02-26T09:55:40.020-08:00''अब सोचती हूँ ,हमें उन्हें से ऐसी बेतुकी ...''अब सोचती हूँ ,हमें उन्हें से ऐसी बेतुकी बातें नहीं करनी चाहिये थीं ।उनकी अपनी मजबूरियाँ थीं ,''<br /><br />जी..और मुझे भी बिलकुल अच्छा नहीं लगा ललिता जी का ये कहना रमा जी से.....:( ...आप कह नहीं सकते कि आपके साथ वाला इंसान किस स्तर पर कौन सी लड़ाई लड़ रहा है......?<br /><br />मैंने भी एक दफे एक ब्लड कैंसर के मरीज़ की माँ से ब्लड लेने देने पर ब्लड बैंक के नियम बाबत बहस की थी....बहस भी नहीं...एक दो चीज़ें समझानी चाहीं थीं......उनका बच्चा (Prahlaad) वार्ड में दम तोड़ रहा था...मैं भूल गयी थी कि मैं एक माँ से बात कर रहीं हूँ....जब तक एहसास होता..वे जा चुकीं थीं...गलती sudhaar ने और मुआफी के लिए मैं खुद bachche ke liye ब्लड bag लेकर गयी....वार्ड में अपने जूनियर को ब्लड थमा के भी आई...मगर मन का एक हिस्सा आज ४ साल हुए..अभी तक उसी वार्ड में है....क्यूंकि मैं प्रहलाद की माताजी से मुआफी नहीं मांग पायी..कारण..मेरी आँखों के आगे मेरा सहपाठी उसे मृत घोषित कर रहा था...और विक्षिप्त सरीखी उसकी माँ दीवार से लगी खड़ीं थीं....<br /><br />pata hai Pratibha ji...आपकी पोस्ट पढ़ के लगा मेरी चोरी किसी ने पकड़ ली.....मन स्वयं के लिए घृणा से भर गया एकदम......<br />अपराध वही है...बस किरदार और गलती की गंभीरता बदल गए हैं.....मैं अपने मन की आत्मग्लानि आपके शब्दों से फिर महसूस कर रही हूँ........ललिता जी क्या सोच रहीं होंगी अच्छी तरह से समझ सकती हूँ....<br />खैर,,,सिर्फ पोस्ट को पोस्ट के तौर पर पढूं...तो ...न ...ऐसे मैं नहीं पढ़ सकती बिना खुद को किसी शब्द से जोड़े...!!<br />चलिए कुछ और पढ़ती हूँ...यहाँ बहुत संजीदा सा मौसम हो गया...Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.com