tag:blogger.com,1999:blog-1961251703549212605.post8891170130983505868..comments2023-10-16T04:02:23.836-07:00Comments on भानमती का कुनबा: सब एक सेप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-1961251703549212605.post-2059945263415150382012-09-28T21:23:53.629-07:002012-09-28T21:23:53.629-07:00शब्द भले ही भारी-भरकम न हों ,बात को बहत आसान बना क...शब्द भले ही भारी-भरकम न हों ,बात को बहत आसान बना कर सरल लहज़ें कह दिया गया हो लेकिन मूल कथ्य की ओर संकेत कर उस पर अपने ही ढंग से विचार करने को प्रेरित करना चाहती हूँ ! प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1961251703549212605.post-75390850687572393672012-09-24T12:11:36.353-07:002012-09-24T12:11:36.353-07:00जीवन में जो भी जितना अधिक महत्वपूर्ण है..मनुष्य अप...जीवन में जो भी जितना अधिक महत्वपूर्ण है..मनुष्य अपनी सहज बुद्धि से उसे हाशिये पर ढकेल देना पसंद करता है..चाहे वो स्त्री हो..वृक्ष हों अथवा कोई और.स्त्रियों के लिए तो हम हर सीमा पार कर देते हैं..क्यूँकी हम वो प्राणी हैं जो देवी माँ के जयकारे लगाते हैं..माता के गर्भ से जन्म लेते हैं ...माता के नाम की गालियाँ देते हैं..और ''यत्र नार्यस्तु..'' का श्लोक भी पढ़ते हैं.जल से भी तरल है हमारे समाज के लिए एक नारी का अस्तित्व.केवल हमें अपनी मानसिकता का पात्र गढ़ना होता है..वो उच्च से उच्च हो अथवा तुच्छ से तुच्छ ...स्त्री तो किसी भी विचारधारा में समाहित हो ही जाती है.<br />आजकल स्वामी विवेकानंद और उनके गुरुदेव को पढ़ रही हूँ..नारी शक्ति के अनादर को लेकर स्वामी जी बहुत व्यथित थे..एक जगह कहते हैं..,''क्या कारण है कि संसार में हमारा देश ही सबसे पिछड़ा हुआ और बलहीन है ?क्यूँकि वहाँ शक्ति का निरादर होता है.अमेरिका यूरोप में मैं क्या देखता हूँ?-शक्ति की उपासना..परंतु अज्ञानवश वे उसकी उपासना इन्द्रियभोग द्वारा करते हैं.कल्पना करो कि जो पवित्रता से सात्विक भाव द्वारा अपनी माता के रूप में उसे पूजेंगे ..वे और उनका देश कितने कल्याण को प्राप्त करेगा''.ऐसे भाव रहें तो नैतिक स्तर कोई भी पुरुष मर्यादा से गिर कर आचरण नहीं ही कर सकेगा.पर इतना उच्च भाव हृदय और व्यवहार में ला पाना तो अत्यंत ही कठिन काम होगा.फिर यहाँ तो औरत ही औरत की अधिक दुश्मन है.सारी अपेक्षाएँ केवल पुरुष वर्ग से करना भी न्यायसंगत नहीं है.<br />पोस्ट उतनी गंभीर नहीं है शायद जितना गंभीरता से मैंने उसे ले लिया.विषय से भटक के कोई बात कह गयी होऊं तो माफ़ कीजियेगा.मेरे लिए ये लेख बहुत अच्छा रहा.माँ से भी बहुत बात की इस पोस्ट के विभिन्न बिन्दुओं पर ..मसलन 'स्त्रियों से शालीन पहनावे की अपेक्षा करना क्या उनकी आज़ादी को रोकना होगा' या 'महिलाओं से मर्यादित आचरण की आशा रखना अप्रत्यक्ष रूप से पुरुषों के वर्चस्व को स्वीकार करना होगा''.....मैंने काफी सोचा पढ़ने के बाद.आभार ऐसी पोस्ट के लिए :)<br />(बहुत बार ये पोस्ट पढ़ी थी..कई बार टिप्पणी देने का प्रयत्न किया...किन्तु कुछ व्यवस्थित और संतुलित लिख ही नहीं पायी.कई बार प्रयत्न किया..हर बार कुछ न कुछ उग्र विचार पूरी टिप्पणी पर हावी हो जाते थे..विवश होकर मैं लिखा हुआ मिटा देती थी.'स्त्री की बुद्धि और विवेक पर पुरुषत्व का गहरा लेप','नारी के अधिकार अथवा अनुचित स्वतंत्रता','आधुनिकता के मापदंड:भौतिक अथवा मानसिक','पुरुष के लिए मर्यादा का लचीलापन'....जैसे कितने और अलग अलग विषयों पर सोचते हुए इस पोस्ट पर अपनी उपस्थिति अंकित करने का बस जतन ही करती रह गयी.<br />देरी से आने के लिए क्षमा प्रार्थी प्रतिभा जी!! :(..)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1961251703549212605.post-16260056473599796932012-08-23T11:28:51.847-07:002012-08-23T11:28:51.847-07:00यहाँ तो पुरुषों की ही चलती है ... अंतिम पंक्तियों ...यहाँ तो पुरुषों की ही चलती है ... अंतिम पंक्तियों में तीखा कटाक्ष है संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1961251703549212605.post-20797974127851215732012-08-02T20:42:02.340-07:002012-08-02T20:42:02.340-07:00पुरुष प्रधान देश की व्यथापुरुष प्रधान देश की व्यथाSunil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10008214961660110536noreply@blogger.com