सुना-गुना -
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विधवा - काली का एक नाम विधवा भी है ..
एक समय बहुत क्रोध में वे संहार कर रहीं थीं. देवगण घबरा गए .अनेक उपाय किए पर उनका क्रोध शान्त नहीं हुआ .अंत में सहकाल शिव से विनती की गई कि वे अपनी पत्नी का वेग रोकें .
शिव सामने आए पर क्रोध में महाकाली उन्हें भी चबा गईँ.विश्व में हाहाकार मच गया .देवता और सप्तर्षि एक साथ मिल कर अनुनय-विनय करते सामने लेट गए .तब भगवती को ध्यान आया कि वे क्या कर बैठीं.उन्होंने तत्काल शिव को मुँह से उगल दिया .तभी से उनका एक नाम विधवा हो गयी .यह नाम बड़ा शुभ शब्द माना जाता है.
प्रतीक रूप में इस कथा का अर्थ है मृत्यु को भी खा जानेवाली .महाकाल की धरातल पर लेटी हुई शक्ति पर महशक्ति खड़ी है .महाकाल की छाती पर जीभ फैलाए कह रही है -आओ अपने संस्कार हमें अर्पित करो ,मैं उन्हें खा जाऊँगी .,तुम्हें मोक्ष दूँगी .
तुम्हें महाकाल से क्या डर!वह तो मेरे पैरों के नीचे पड़ा है .मैं तुम्हें अमर कर दूँगी .पहले अपने पाप-ताप-लोभ मेरे हवाले करो
उनके बाएँ हाथ में नर-मुण्ड है और रक्त भूमि पर नहीं खप्पर में गिर रहा है .
वे उसे पान कर लेंगी .दाहिना एक हाथ ऊपर उठा अभय-दान कर रहा है .
पर नीचे का खुला है कह रहा है -मेरी शरण में आओ,नीचे पड़े हुए महाकाल को देखो -मैं जनम और मृत्यु से छुटकारा दे रही हूं .
(कन्नड़ के कवि मधुन्ना ने अपने ग्रंथ-अद्भुतरामायण में युद्ध के प्रसंग में महाकाली के द्वारा ही रावण का विनाश करवाया है .धरती माता के कण-कण से तेज काली के रूप में प्रत्यक्ष हो कर रावण के विनाश का कारण बना.)
'जो भ्रान्ति और बुद्धि,तृष्णा और तुष्टि ,निद्रा और चैतन्य जैसे विरोधी ध्रुवोंकी अद्वैत इकाई व्यक्त हुई उस माँ से भी बड़ी कोई ईश्वरी. विभूति नहीं हो सकती .
जो माँ है ,चाहे वह जगदम्बा ,हो जननी हो ,जन्मभूमिहो या जन्म देनवाली हमारी माँ हो उसी केके ये विपरीत ध्रुव पिघल कर हमारा कल्याण करते हैं .
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जो भ्रान्ति और बुद्धि,तृष्णा और तुष्टि ,निद्रा और चैतन्य जैसे विरोधी ध्रुवोंकी अद्वैत इकाई व्यक्त हुई उस माँ से भी बड़ी कोई ईश्वरी. विभूति नहीं हो सकती .
जवाब देंहटाएंजो माँ है ,चाहे वह जगदम्बा ,हो जननी हो ,जन्मभूमिहो या जन्म देनवाली हमारी माँ हो उसी के ये विपरीत ध्रुव पिघल कर हमारा कल्याण करते हैं .
सत्यवचन......माँ (किसी भी रूप में hon) से बढ़के कुछ भी नहीं..बहुत अच्छा लगा इस पोस्ट को पढ़ने में....माँ काली को विधवा भी कहते हैं...मुझे बिलकुल भी नहीं पता था ये तो..:(
आभार प्रतिभा जी......ऐसी पोस्ट के लिए.....जिसे पढ़ने में तो आनंद आया ही आया...मगर उस आनंद के लिए ज़्यादा उत्सुक हूँ...जब इस विषय पर और पढ़कर वक़्त बेवक्त शब्दों की जुगाली करुँगी......:)