*
अब भी वह मैटर कभी-कभी हवाओं के साथ उड़ आता है .
एक बार प्लान बनाया था -पूरा नकशा नहीं बना था, बनने की प्रक्रिया में था .
हुआ यों कि उपन्यास साहित्य पर बहस चल रही थी .अचानक मन में आया एक उपन्यास लिखें मिल कर -एक लेखक एक लेखिका .
विभाजन के चार सूत्र हो सकते हैं -
1 पुरुष पात्रों का काम पुरुष लेखक करे ,नारी पात्रों का लेखिका .
2. पुरुष पात्रों का लेखिका करे और नारी का लेखक
3 एक-एक अध्याय बारी-बारी से- एक जहाँ से छोड़े वहाँ से दूसरा उठाए .
4 एक प्रारंभ करेगा.दूसरा समापन .
भाषा-शैली में अनुरूपता रखी जाए कि पढ़ने वालों को झटके न झेलने पड़ें.एक-दूसरे के अनुकूल बने रहने की लगातार कोशिश करें .
मन में मैटर जमा होने लगा .
पर योजना धरी की धरी रह गई .
मैटर कभी समाप्त होता है क्या -किसी-न किसी रूप में कभी-न-कभी ढल ही जाएगा .
*
कोई भ्रम न पालें कि यह किसी 'भानुमती' का कुनबा है इसलिए किसी दीप्तिमती के वाणी-वैभव की प्रत्याशा न करें.यह लोक वाली 'भानमती'का क्षेत्र है ,जिसे जब जैसा 'भान' होने लगता है बोलने पर उतर आती है-न विषय का तारतम्य न भूमिका-उपसंहार की औपचारिकता .बस जो कहना है मुक्त मन से कह डाला - कहावत जैसा बेमेल - 'भानमती का कुनबा'! . '
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
मैं लिख दूँगा !
***
दृष्य- 1
हमने सुना है इस बीरन सिंग ने भाषण लिखने का काम तुम्हें सौंपा है ?
हाँ मुझसे कहा गया है . लिख दूँगा ,जाने कित्ते भाषण लिखे हैं .इन चुनाव लड़नेवालों को कुछ आता-जाता थोड़े है ,औरों के दम पर पलते हैं
लिख तो तुम दोगे ,वाहवाही उनकी करवाओगे .और पता है इस आदमी ने किया क्या है?
क्या किया ?
क्या नहीं किया उसने ये पूछो उसमें .हमारी गाँव की ज़मीन हथिया ली इसने .जाने कितने गुंडों का पाल रखा है ,
अच्छा !
ये जो नेताजी का भट्टा है ,इसकी असलियत पता है.भट्टा क्या बदमाशों का अड्डा है .दिन में ईँटें पथती हैं औऱ रात में ट्रक लेकर डाका चालने निकलते हैं .
नेता जी के भतीजे की बस है ,लािसेंस की क्या ज़रूरत इन्हें !सालों ऐसी ही चलती है .हम तो कई बार इस पर आए गये हैं ..बैसे भी हमें कभी चिकट नहीं लेना पड़ता .
ससुरे सब बदमाश हैं .हत्या ये करवाएं .डाके ये डलवाएं .
लोगों को उठा लाते हैं और सँदेसा भइजवा देते हैं ,इतने पैसे ,इतना धन यहाँ रख जाना ..
अरे अभी पिछले साल मसहूर डाक्टर को ग़ायब कर लाए .पिस्तौलबाज़ी से कोई घायल हुआ होयगा अपना आदमी .या किसी का पेय गिरवाना होगा .अदावत तो चलती ही रहती है .
जब जरूरत हुई किसी डाक्टर या लेडी डाक्टर को पकड़ लाते हैं .
तुम चाहते क्या हो ?
पिटे या मुँह काला करके जाए यहाँ से.
पढ़ा-लिखा है ?
आठवीं पास .पैसे और गुंडों के बल पर बना बैठा है .
जाओ, हो जाएगा तुम्हारा काम .
कैसे?
सब समझा दूँगा .
*
दूसरा दृष्य (उम्मीदवार के भाषण का ताम-झाम) .
एक आदमी -,काहे कित्ती देर हैं ,बीरन बाबू अभै आये नहीं ?
दूसरा- चल पड़े हैं हुअन से.बस पाँचै मिन्ट में पहुँचन वारे हैं .
तैयारी तो पूरी है .
हम होयँ और काम में कसर रहि जाय .अइस कइस हुइ सकत है .
अरे ये लाठा-आठी कहे को ,
गाँव के लोग लाठी बिना कइस चलें .मारग में कुत्ता ,पीछे लगि जाय तौन ..
एक -अरे ऊ तो हमार गाम केर मानुस है ,नेताजी का गाँव .निसाखातिर रहो .
लो ,आगए ,आ गए ..
सब चुप होकर बैठ गए .
नेता जी ने अपना भाषण शुरू किया ,'मैं सालों से यही कहता रहा हूँ कि आज जो ...'
आगे की तीसरी पंक्ति से एक आदमी चिल्लाया ,'गाली दे रहा है ,देखो तो जरा !
एक और चिल्लाया -हम भाषण सुनने आये हैं -गाली-गलौज सुनने नहीं !
क्या कहा ?
साला -साला कह रहा है सबन को .
सच्ची? ,
अरे अभी तो कहा ,कहो फिर कह दे .
हमें साला कह रहा है ....दो तीन लोग उठ कर खड़े हो गये -क्या कहा ,क्या कहा ..?
अरे अभी अभी तो कहा.
क्या बात है भई ,पीछे आवाज़ नहीं जा रही क्या ?..
.फिर से कहिये ।कुछलोगों ने नहीं सुना ।
मंत्री जी और ज़ोश से चिल्लाये ,'सालों से कह रहा हूँ ..अब तो सुनाई दे रहा है ?'
उन्होंने फिर से भाषण शुरू किया ,हाँ तो ज़ोर-जोर से बोल रहा हूँ कि सब सुन लें , मैं यही बात सालों से कह रहा हूँ
क्या कह रहे हो मंत्री जी. फिर से तो कहना -
अरे चीख़-चीख कर कह रह हूँ -सालों से कह रहा हूँ हाँ,सालों से .
देखा,बराबर कहे जा रहा है !
हाँ ,बराबर गाली दिए जा रहा है..हम लोग चुप्पै सुनते रहेंगे का इनकी गालियाँ?
क्यों महावीरे ?
महावीरे के साथ दो-चार लोग और उठ खड़े हुए .
एक चिल्लाया-हम गालियाँ सुनने नहीं आए हैं .
बैठों में से किसी ने पूछा-हाँ, सच्ची गाली दे रहा है
और क्या झूठ बोल रहे हैं हम ?लेओ फिर से सुनवाए देते हैं .
स्टेज से मंत्री चिल्लाए .ये क्या गड़बड़ हो रहा है ,आप लोग चुप्पे सुनिए हम बड़े मार्के की बात कहने वाले हैं
सुरू वाला इन लोगन ने सुन नहीं पाया सो मार चिल्लाय रहे हैं ,
सुरू की लाइने फिर से बोल देओ
ओहो ,कित्ती बार कहें कही बात ?,चलो फिर से कहे दे रहे हैं ,अब साफ़ सुन लेना सालों से ....
फिर तो हल्ला मच गया .लोग खड़े होने लगे.
कुछ लोग स्टेज पर चढ़ गए .अफरा-तफ़री मच गई .घेर लिया उन लोगो ने .
नेता चिल्ला रहे हैं .सफ़ाई दे रहै हैं कौनो नहीं सुन रहा ,कुछ तो बड़े उत्तेजित हैं.
वे गिड़गिड़ा रहे हैं- हमार ई मतबल नहीं रहे .
हाथ जोड़े घिघिया रहे हैं .उन्हें बचानेवाले ,पुलिसवाले सब भकुआए इधर-उधऱ भाग रहे हैं .
ई नेता की दुम पबलिक का गाली देता है .
हो रही है मरम्मत मंच से नीचे खींच कर .पुलिस छुड़ाए-बचाए तब तक गत बना डाली लोगन ने .
दोनों दोस्त किनारे खड़े हैं .
क्यों ,अब तो खुश,हो गई मंशा पूरी ?
कमाल कर दिया !
आज तुम्हार अक्कल का लोहा मान गए .
चलो अब काफ़ी हो गया .
फिर दोनों लोग पहुँच गए और लोगों से छुड़ा लाए नेता को, चच्,चच् करते सहानुभूति दिखाते.
अरे ई लोग ठहरे गँवार ,आप कहाँ ढँग की बात कहि रहे हो .चलिए चलिए .सब उजड्ड हैं कौनो बात करने लायक नहीं .
ले गए नेता जी को हल्दी डाल के गरम दूध पिलाने.
**
दृष्य- 1
हमने सुना है इस बीरन सिंग ने भाषण लिखने का काम तुम्हें सौंपा है ?
हाँ मुझसे कहा गया है . लिख दूँगा ,जाने कित्ते भाषण लिखे हैं .इन चुनाव लड़नेवालों को कुछ आता-जाता थोड़े है ,औरों के दम पर पलते हैं
लिख तो तुम दोगे ,वाहवाही उनकी करवाओगे .और पता है इस आदमी ने किया क्या है?
क्या किया ?
क्या नहीं किया उसने ये पूछो उसमें .हमारी गाँव की ज़मीन हथिया ली इसने .जाने कितने गुंडों का पाल रखा है ,
अच्छा !
ये जो नेताजी का भट्टा है ,इसकी असलियत पता है.भट्टा क्या बदमाशों का अड्डा है .दिन में ईँटें पथती हैं औऱ रात में ट्रक लेकर डाका चालने निकलते हैं .
नेता जी के भतीजे की बस है ,लािसेंस की क्या ज़रूरत इन्हें !सालों ऐसी ही चलती है .हम तो कई बार इस पर आए गये हैं ..बैसे भी हमें कभी चिकट नहीं लेना पड़ता .
ससुरे सब बदमाश हैं .हत्या ये करवाएं .डाके ये डलवाएं .
लोगों को उठा लाते हैं और सँदेसा भइजवा देते हैं ,इतने पैसे ,इतना धन यहाँ रख जाना ..
अरे अभी पिछले साल मसहूर डाक्टर को ग़ायब कर लाए .पिस्तौलबाज़ी से कोई घायल हुआ होयगा अपना आदमी .या किसी का पेय गिरवाना होगा .अदावत तो चलती ही रहती है .
जब जरूरत हुई किसी डाक्टर या लेडी डाक्टर को पकड़ लाते हैं .
और तुम मेरे दोस्त ,उसी की वाह-वाही कराओगे ?
तुम चाहते क्या हो ?
पिटे या मुँह काला करके जाए यहाँ से.
पढ़ा-लिखा है ?
आठवीं पास .पैसे और गुंडों के बल पर बना बैठा है .
जाओ, हो जाएगा तुम्हारा काम .
कैसे?
सब समझा दूँगा .
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दूसरा दृष्य (उम्मीदवार के भाषण का ताम-झाम) .
एक आदमी -,काहे कित्ती देर हैं ,बीरन बाबू अभै आये नहीं ?
दूसरा- चल पड़े हैं हुअन से.बस पाँचै मिन्ट में पहुँचन वारे हैं .
तैयारी तो पूरी है .
हम होयँ और काम में कसर रहि जाय .अइस कइस हुइ सकत है .
अरे ये लाठा-आठी कहे को ,
गाँव के लोग लाठी बिना कइस चलें .मारग में कुत्ता ,पीछे लगि जाय तौन ..
एक -अरे ऊ तो हमार गाम केर मानुस है ,नेताजी का गाँव .निसाखातिर रहो .
लो ,आगए ,आ गए ..
सब चुप होकर बैठ गए .
नेता जी ने अपना भाषण शुरू किया ,'मैं सालों से यही कहता रहा हूँ कि आज जो ...'
आगे की तीसरी पंक्ति से एक आदमी चिल्लाया ,'गाली दे रहा है ,देखो तो जरा !
एक और चिल्लाया -हम भाषण सुनने आये हैं -गाली-गलौज सुनने नहीं !
क्या कहा ?
साला -साला कह रहा है सबन को .
सच्ची? ,
अरे अभी तो कहा ,कहो फिर कह दे .
हमें साला कह रहा है ....दो तीन लोग उठ कर खड़े हो गये -क्या कहा ,क्या कहा ..?
अरे अभी अभी तो कहा.
क्या बात है भई ,पीछे आवाज़ नहीं जा रही क्या ?..
.फिर से कहिये ।कुछलोगों ने नहीं सुना ।
मंत्री जी और ज़ोश से चिल्लाये ,'सालों से कह रहा हूँ ..अब तो सुनाई दे रहा है ?'
उन्होंने फिर से भाषण शुरू किया ,हाँ तो ज़ोर-जोर से बोल रहा हूँ कि सब सुन लें , मैं यही बात सालों से कह रहा हूँ
क्या कह रहे हो मंत्री जी. फिर से तो कहना -
अरे चीख़-चीख कर कह रह हूँ -सालों से कह रहा हूँ हाँ,सालों से .
देखा,बराबर कहे जा रहा है !
हाँ ,बराबर गाली दिए जा रहा है..हम लोग चुप्पै सुनते रहेंगे का इनकी गालियाँ?
क्यों महावीरे ?
महावीरे के साथ दो-चार लोग और उठ खड़े हुए .
एक चिल्लाया-हम गालियाँ सुनने नहीं आए हैं .
बैठों में से किसी ने पूछा-हाँ, सच्ची गाली दे रहा है
और क्या झूठ बोल रहे हैं हम ?लेओ फिर से सुनवाए देते हैं .
स्टेज से मंत्री चिल्लाए .ये क्या गड़बड़ हो रहा है ,आप लोग चुप्पे सुनिए हम बड़े मार्के की बात कहने वाले हैं
सुरू वाला इन लोगन ने सुन नहीं पाया सो मार चिल्लाय रहे हैं ,
सुरू की लाइने फिर से बोल देओ
ओहो ,कित्ती बार कहें कही बात ?,चलो फिर से कहे दे रहे हैं ,अब साफ़ सुन लेना सालों से ....
फिर तो हल्ला मच गया .लोग खड़े होने लगे.
कुछ लोग स्टेज पर चढ़ गए .अफरा-तफ़री मच गई .घेर लिया उन लोगो ने .
नेता चिल्ला रहे हैं .सफ़ाई दे रहै हैं कौनो नहीं सुन रहा ,कुछ तो बड़े उत्तेजित हैं.
वे गिड़गिड़ा रहे हैं- हमार ई मतबल नहीं रहे .
हाथ जोड़े घिघिया रहे हैं .उन्हें बचानेवाले ,पुलिसवाले सब भकुआए इधर-उधऱ भाग रहे हैं .
ई नेता की दुम पबलिक का गाली देता है .
हो रही है मरम्मत मंच से नीचे खींच कर .पुलिस छुड़ाए-बचाए तब तक गत बना डाली लोगन ने .
दोनों दोस्त किनारे खड़े हैं .
क्यों ,अब तो खुश,हो गई मंशा पूरी ?
कमाल कर दिया !
आज तुम्हार अक्कल का लोहा मान गए .
चलो अब काफ़ी हो गया .
फिर दोनों लोग पहुँच गए और लोगों से छुड़ा लाए नेता को, चच्,चच् करते सहानुभूति दिखाते.
अरे ई लोग ठहरे गँवार ,आप कहाँ ढँग की बात कहि रहे हो .चलिए चलिए .सब उजड्ड हैं कौनो बात करने लायक नहीं .
ले गए नेता जी को हल्दी डाल के गरम दूध पिलाने.
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शनिवार, 4 सितंबर 2010
केवल महिलाओं के लिए
* (कुछ उपयोगी सुझाव)
जिस समय पति से घर का कोई काम करा रही हों -
* 1 . उस समय आपको खाली नहीं रहना चाहिए कुछ करती हुई ही दिखाई दें.चाहे दूसरे कमरे में चली जाइये वहाँ चाहे जो चाहें करिए .चले जाना इसलिए भी अच्छा है कि काम करने का उनका ढंग देख कर आप बिना टोके रह नहीं पाएँगी (बेकारमें कहा-सुनी होने लगे तो जो काम कर रहे हैं उससे भी जाएँगी).
* 2 . दिखना यही चाहिए कि आप व्यस्त हैं .कुछ पढ़ना ही चाहें तो कोई कपड़ा और सुई-धागा सामने कर के, कोई देखे तो लगे कि कुछ सिलाई चल रही हैं.
* 3 .इधर आना हो तो हँसती हुई कदापि न आएं ,खुश न दिखाई दें नहीं तो वे समझेंगे मुझसे काम करा के खुश हो रही है .
* 4 . थोड़ा सा मुँह बना लें तो और अच्छा .किसी बात पर हँसी भी आए तो दूसरी जगह जाकर हँस आएँ ,इधर आने पर गंभीर होना या मुँह ज़रा चढ़ा होना फ़ायदेमंद है .इससे उनकी हिम्मत नहीं पड़ेगी कि कहें 'ज़रा यह उठा दो '',वो रख दो' .नहीं तो जब तक कुछ करेंगे आपको बराबर घेरे रहेंगे.
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जिस समय पति से घर का कोई काम करा रही हों -
* 1 . उस समय आपको खाली नहीं रहना चाहिए कुछ करती हुई ही दिखाई दें.चाहे दूसरे कमरे में चली जाइये वहाँ चाहे जो चाहें करिए .चले जाना इसलिए भी अच्छा है कि काम करने का उनका ढंग देख कर आप बिना टोके रह नहीं पाएँगी (बेकारमें कहा-सुनी होने लगे तो जो काम कर रहे हैं उससे भी जाएँगी).
* 2 . दिखना यही चाहिए कि आप व्यस्त हैं .कुछ पढ़ना ही चाहें तो कोई कपड़ा और सुई-धागा सामने कर के, कोई देखे तो लगे कि कुछ सिलाई चल रही हैं.
* 3 .इधर आना हो तो हँसती हुई कदापि न आएं ,खुश न दिखाई दें नहीं तो वे समझेंगे मुझसे काम करा के खुश हो रही है .
* 4 . थोड़ा सा मुँह बना लें तो और अच्छा .किसी बात पर हँसी भी आए तो दूसरी जगह जाकर हँस आएँ ,इधर आने पर गंभीर होना या मुँह ज़रा चढ़ा होना फ़ायदेमंद है .इससे उनकी हिम्मत नहीं पड़ेगी कि कहें 'ज़रा यह उठा दो '',वो रख दो' .नहीं तो जब तक कुछ करेंगे आपको बराबर घेरे रहेंगे.
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