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अब भी वह मैटर कभी-कभी हवाओं के साथ उड़ आता है .
एक बार प्लान बनाया था -पूरा नकशा नहीं बना था, बनने की प्रक्रिया में था .
हुआ यों कि उपन्यास साहित्य पर बहस चल रही थी .अचानक मन में आया एक उपन्यास लिखें मिल कर -एक लेखक एक लेखिका .
विभाजन के चार सूत्र हो सकते हैं -
1 पुरुष पात्रों का काम पुरुष लेखक करे ,नारी पात्रों का लेखिका .
2. पुरुष पात्रों का लेखिका करे और नारी का लेखक
3 एक-एक अध्याय बारी-बारी से- एक जहाँ से छोड़े वहाँ से दूसरा उठाए .
4 एक प्रारंभ करेगा.दूसरा समापन .
भाषा-शैली में अनुरूपता रखी जाए कि पढ़ने वालों को झटके न झेलने पड़ें.एक-दूसरे के अनुकूल बने रहने की लगातार कोशिश करें .
मन में मैटर जमा होने लगा .
पर योजना धरी की धरी रह गई .
मैटर कभी समाप्त होता है क्या -किसी-न किसी रूप में कभी-न-कभी ढल ही जाएगा .
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बहुत बहुत अच्छा आईडिया है.....ऐसा तो आराम से हो सकता है प्रतिभा जी.....मैं सोच रही हूँ...कितना मज़ा आता ऐसी कृति को पढ़ने में....जहाँ दो मन मिलकर एक राह पर लिख रहे हों....अद्भुत सामंजस्य और टकराव ,साथ साथ विचारों की भिन्नता...,कोमल और कठोर भावों का द्वन्द.....ये सब पढ़ना कितना आनंददायी होता न प्रतिभा जी...??
जवाब देंहटाएंमैं भी किन्ही दो लेखक लेखिकाओं को ऐसा उपन्यास लिखने के लिए प्रेरित करुँगी....क्या पता आपके तसव्वुर का अंकुर कहीं और पनप जाए...नहीं???
:):)
इस पोस्ट को इस ख्याल को बांटने का आभार.......