गुरुवार, 26 अगस्त 2010

लाचार आदमी !

एक ख़बर-

 'आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने परीक्षा में नकल करने के आरोप में पांच जजों को निलंबित कर दिया है. वारंगल जिला स्थित काकतीय विश्वविद्यालय के आर्ट कॉलेज में 24 अगस्त को मास्टर ऑफ लॉ [एलएलएम] की परीक्षा के दौरान अजीतसिम्हा राव, विजेंदर रेड्डी, एम. किस्तप्पा, श्रीनिवासआचार्य और हनुमंत राव नाम के जज नकल करते पकड़े गए.

विश्वविद्यालय के अतिरिक्त परीक्षा नियंत्रक एन. मनोहर के अनुसार, ये जज कमरा नंबर 102 में परीक्षा दे रहे थे तभी उनके नेतृत्व में एक दल औचक निरीक्षण पर वहां पहुंच गया. इन जजों में से एक ने कापी के अंदर कानून की किताब छुपा रखी थी और उससे नकल कर रहे थे. अन्य जजों के पास से लिखी हुई पर्चियां और पाठ्य पुस्तकों के फाड़े हुए पन्ने बरामद हुए. निरीक्षकों ने इन सभी चीजों को जब्त कर लिया और जजों को आगे लिखने से रोक दिया.'

क्यों क्या जज इंसान नहीं होते ?

परीक्षा के तो नाम से ही दम खुश्क हो जाता है .और क्योंकि  परीक्षा दे रहे थे, उस स्थिति में वे केवल परीक्षार्थी थे .न जज थे न मुवक्किल ,न वकील.अगर परीक्षा-कक्ष में जज होते तो तो जजमेंट का काम उनका होता ,वे स्वयं किसी के निरीक्षण  के अंतर्गत नहीं होते .
परीक्षा देने की मानसिकता ही अलग होती है .और अचानक निरीक्षण !
बिना वार्निंग के तो गोली भी नहीं चलाई जाती .पहले बता देना था. अब उनका जजमेंट कौन करेगा.साधारण आदमी  जजों का न्याय करे इससे बड़ा अन्याय उन पर क्या होगा ?
तरस आ रहा है मुझे तो उन बेचारों पर .
जब राजनीति के ऊँचे-ऊँचे लोग न्याय से ऊपर होते हैं तो एक जज तो वैसे भी न्याय से ऊपर हुआ.न्याय तो एक प्रक्रिया है ,जिसे करनेवाला वह ख़ुद है.
कोई बंद आँखोंवाला न्याय का तराजू सँभाले है ,
- और बेचारा जज - लाचार आदमी !

 आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने परीक्षा में नकल करने के आरोप में पांच जजों को निलंबित कर दिया है। वारंगल जिला स्थित काकतीय विश्वविद्यालय के आर्ट कॉलेज में 24 अगस्त को मास्टर ऑफ लॉ [एलएलएम] की परीक्षा के दौरान अजीतसिम्हा राव, विजेंदर रेड्डी, एम. किस्तप्पा, श्रीनिवासआचार्य और हनुमंत राव नाम के जज नकल करते पकड़े गए।
विश्वविद्यालय के अतिरिक्त परीक्षा नियंत्रक एन. मनोहर के अनुसार, ये जज कमरा नंबर 102 में परीक्षा दे रहे थे तभी उनके नेतृत्व में एक दल औचक निरीक्षण पर वहां पहुंच गया। इन जजों में से एक ने कापी के अंदर कानून की किताब छुपा रखी थी और उससे नकल कर रहे थे। अन्य जजों के पास से लिखी हुई पर्चियां और पाठ्य पुस्तकों के फाड़े हुए पन्ने बरामद हुए। निरीक्षकों ने इन सभी चीजों को जब्त कर लिया और जजों को आगे लिखने से रोक दिया.'
क्यों क्या जज इंसान नहीं होते ?
परीक्षा के तो नाम से ही दम खुश्क हो जाता है .और क्योंकि  परीक्षा दे रहे थे, उस स्थिति में वे केवल परीक्षार्थी थे .न जज थे न मुवक्किल ,न वकील .अगर परीक्षा-कक्ष में जज होते तो तो जजमेंट का काम उनका होता ,वे स्वयं किसी के निरीक्षण  के अंतर्गत नहीं होते .
परीक्षा देने की मानसिकता ही अलग होती है .और अचानक निरीक्षण !
बिना वार्निंग के तो गोली भी नहीं चलाई जाती .पहले बता देना था . अब उनका जजमेंट कौन करेगा .साधारण आदमी  जजों का न्याय करे इससे बड़ा अन्याय उन पर क्या होगा .
तरस आ रहा है मुझे तो उन बेचारों पर .
जब राजनीति के ऊँचे-ऊँचे लोग न्याय से ऊपर होते हैं तो एक जज तो वैसे भी न्याय से ऊपर हुआ .न्याय तो एक प्रक्रिया है ,जिसे करनेवाला वह ख़ुद है.
कोई बंद आँखोंवाला पात्र  न्याय का तराजू सँभाले है 
- और बेचारा जज ,लाचार आदमी !

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रतिभा जी,

    शुभकामनायें..... एक सटीक और उच्च कोटि का व्यंग्य.....आप साहित्यिक कोटि के लेख लिखती हैं|

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  2. तीखा कटाक्ष है प्रतिभा जी..... एकबारगी समझ नहीं आया कि हो क्या रहा है...थोड़ा बुद्धि का इस्तेमाल करना पड़ गया....:)

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