मंगलवार, 20 जुलाई 2010

बोल कर देखिय़े -बां..डुं...ग.

मुझे ऐसे नाम बहुत अच्छे लगते हैं जैसे होनोलूलू,कुस्तुनतुनिया,कुंभकोणम्,कोडईकोनाल .,झुमरी तलैया ,वैसे बरेली भी ठीक है पर वहाँ के बाजार में झुमका गिरने का खतरा होता है ।पता नहीं कौन लोग हैं जो ढूँढ कर उठा लेते हैं ,मैने तो खोना ही खोना सुना है ।रोज कहीं न कहीं से शिकायत सुनने को मिलती है ।बरेलीवालों को मिलता होगा । चुपचाप रख लेते हैं किसी को बताते नहीं ।
बाँडुंग सम्मेलन के बारे तो सुना होगा ,अपनी इन्दिरा जी के ज़माने में ।बांडुंग सुन कर मुझे लगा जोसे कोई बड़ी सी चीज़ जलतरंग जैसी मधुर आवाज़ करते हुये पानी में डूब गई हो ।मैं मुँह से बार बार दुहराती थी -बांडुंग ,बांडुंग !इस अर्थ के लिये डुबक या गुड़ुप शब्द भी हैं पर उसमे वह मनोहारिता कहाँ जो बांडुंग में है ,उसमे लगता है जैसे पूरी डूबने पहले वाली स्थित हो ।गुडुम शब्द भी है पर उसमे लगता है जैसे चीज़ एकदम डूब कर तल में बैठ गई जब कि बांडुंग में धीरे धीरे भरते जाने और फिर पूरा डूबने की क्रमिक और उत्तरोत्तर गहरी होती और फिर लहरते हुये शान्त होने की ध्वनियाँ हैं ।बोल कर देखिये- बांडुंग !
झुमरी तलैया अपने देश का ऐसा स्थान है जिसका नाम सुनते ही आभास होने लगता है कि शीश पर झूमर लगाये बालायें तलैया में कलोल कर रही हैं ।नीचे के जेवर दिखाई नहीं देते पानी में हैं न सिर का झूमर और उसके प्रतिबिम्ब लहराते झूम जाते हैं ।यह तलैया पुराने ज़माने में बहुत बड़ी रही थी ,फिर लोकमानस की रसिकता के साथ साथ सिमटती गई ,पता नहीं अब कितनी बची है ।जाने कितनी नदियाँ तालाब सूख गये पर उनके नाम अभी बाकी हैं ।झुमरी तलैया अब भी है और आगे भी बनी रहेगी ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब प्रतिभा जी ......वाकई कुछ नाम भी अजीब होते हैं |

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  2. वो 'बंधु रे'' वाली कविता पढने के बाद सीधे ये पोस्ट पढ़ी....इस दौरान आपके और अपनी दोस्त के बारे में सोच रही थी...कि आपलोग किस तरह से वहां रह पातें होंगे....jo मैं सोचने से घबराती हूँ..वो आप face कर रहे हैं.....:(

    aise में ये jhumri talaiya wali पोस्ट बहुत raahat de gayi.....humara friend circle kaafi shararti रहा है.......magar aaj tak hum भी aise ''gudum..budum...baandung'' par itna नहीं सोच paaye.....:) मुझे शक़ है इस पोस्ट में आपके परिवार के किसी बच्चे का हाथ अवश्य है......:)

    खैर...जो भी हो...बहुत badhiyaan पोस्ट.....बधाई ! :)

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  3. क्यों तरु,हम सब में एक बच्चा कहीं छिपा नहीं रहता क्या ,जो अनुकूल अवसर पा कर मचल उठता है -सब के सामने न सही ?

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  4. हमारे अंदर वो बच्चे वाली बात कहाँ प्रतिभा जी......हम तो पहले...अपनी उम्र देखते हैं.....वातावरण देखते हैं....और उसके अनुकूल आचरण करते हैं........

    एक शेर बरबस याद आगया....

    '' मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा,
    बड़ों की देखकर दुनिया बड़ा होने से डरता है ''

    :)

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