मंगलवार, 11 मई 2010

एक बात बताऊँ

'मम्मी एक बात बताऊँ?'
हाँ, हाँ ,बताओ ।'
'किसी से कहेंगी तो नहीं ?'
मम्मी ने कौतुक से देखा -इतना छोटा लड़का कौन सी प्राइवेट बात कर रहा है जो किसी से कहने की नहीं !
'नहीं !'
'वो जो लल्लू है न ,उसके पापा दरवाज़ा बंद कर के घर में झाड़ू लगाते हैं ,'जैसे किसी की पोल खोल रहा हो ऐसे स्वरों में बोला ।
'अच्छा !', उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया ।
'हाँ ,और जब उसकी मम्मी-पापा में झगड़ा हो जाता है तो रोटी भी बनाते हैं ।'
'अरे ,तुम्हें कैसे मालूम ?'
'उसी ने बताया .लल्लू ने ।और कहा तुम किसी से कहना मत ।मम्मी तुम, किसी से मत कहना ।'
'नहीं मैं क्यों कहूँगी किसीसे ।'
'और बतायें ?'
'हाँ,हाँ ।'
'वो लोग अपने घर में अंडा और मीट भी खाते हैं ।'
'तो क्या हुआ ?हमारे घर में भी तो बनता है ।'
'नहीं वो लोग ,चुपके से खाते हैं ,किसी को बताते नहीं ।हम आमलेट ले गये थे तो लल्लू ने माँगी और कहा किसी से कहना मत ।'
'अच्छा !'
मम्मी,तुम किसी से कह मत देना ,उसने बिल्कुल मना कया है ।'
'नहीं ,बिल्कुल नहीं ।मैं क्यों कहूँगी ?'
अपना रहस्य मुझे सौंप कर वह निश्चिंत सो गया है ।
*

1 टिप्पणी:

  1. शुरू शुरू में आपकी ये सारी पोस्ट हड़बड़ी में जल्दी जल्दी पढ़ने के चक्कर में पढ़ डालीं थीं...कुछ कह नहीं पायी थी कहीं....आज दुबारा पढ़ने पर दुगुना आनंद मिला......:D
    पहले जब ये ''एक बात बताऊँ'' पढ़ा मैंने...तब लगा अरे! बड़ा सादा सा लिखा है...बहुत ध्यान नहीं दिया था और आगे बढ़ गयी थी......किसी गूढ़ पोस्ट की खोज में......
    आज मन से पढ़ा...तो कह सकती हूँ.....एक साधारण सी माँ और बच्चे की भोली बातचीत को आपने अपनी आखिरी पंक्ति से कितना ख़ास बना दिया.....
    मुझे तो वाकई आखिरी पंक्ति बहुत मीठी लगी....मगर तब जब सारी पोस्ट पढ़ने के बाद यही एक लाइन बचती है पढ़ने को.......:):)
    भरोसा...निश्छल प्रेम...भोलापन..अबोध बालक की सरलता...एक ही पंक्ति में कितना सारा कुछ छुपा दिया आपने....सोच रहीं हूँ माँ के चेहरे पर कैसे भाव रहे होंगे बच्चे की बातें सुनने के बाद...............:)
    अगर मैं बच्चा होती...i mean बच्ची होती..तो कहती प्रतिभा जी...प्रतिभा जी...ये पोस्ट तो संतरे की गोली जैसी है......:)

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