मंगलवार, 11 मई 2010

माताजी से मत कहना


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इन्टर कॉलेज में पढ़ा रही थी उन दिनों .
हम छः-सात बराबर की टीचर्स थीं बस,दो-तीन साल की छुटाई-बड़ाई रही होगी .यही बीस-बाईस की उम्र .
सब प्रिन्सिपल से खीझी रहतीं थीं -अच्छी पटरी बैठती थी हमलोगों में .शादी हममें से दो की ही हुई थी एक रमा जी को छोड़ कर बाकी सब उम्मीदवारी में थीं .
रमा जी रमा जी जी - ज़रा मोटी और देखने में साधारण , अट्ठाइस पार कर गईं थीं ,तीन छोटी बहिने पढ रहीं थीं .कहतीं थीं मुझे शादी नहीं करनी ,इन लोगों की करवानी है .सादे जीवन में विश्वास करनेवालीबहुत आदर्शवादी महिला थीं .
हमलोगों मे किसी की ज़रा जबियत खराब हो जाये तो लेक्चर झाड़ने लगतीं थीं -'अरे सबसे बड़ी चीज़ है संयम .इन्सान संयम से रहे तो हमेशा स्वस्थ रहे .और हम दोनो विवाहिताओं के सामने ब्रह्मचर्य का महत्व बखानते थकती नहीं थीं .ब्रह्मचारी रहो तो शरीर में शक्ति बनी रहती है .जरा सी मेहनत पड़े तो ये नहीं कि थके जा रहे हैं . चेहरे पर तेज रहता है और मन हमेशा प्रसन्न .दवा की कभी जरूरत ही न पडे और भी जाने क्या - क्या .
हम दोनो को को उनकी लेक्चरबाज़ी सुहाती नहीं थी .पर क्या करते एक तो उम्र में बड़ी ,फिर उनकी बातें नाना पुराण -निगमागम सम्मत .विरोध कर नहीं सकते .खिसयाहट तो लगती ही जैसे हम पापी ,अनाचारी हों .फिर हम भी बोलने लगे .
जरा उनकी तबियत नासाज़ होती , हम फौरन घेर लेते ,'रमा जी ,क्या हो गया ?आप तो बाल-ब्रह्मचारी हैं फिर कैसे ढीली पड़ गईं .शारीरिक ब्रह्मचर्य का महत्व है पर मानसिक उससे भी ज्यादा असर डालता है .आजकल क्या मन में कुछ ऐसा-वैसा ,सोचती रहती हैं ?
दूसरी कहती , 'हाँ मन को जीते बिना सब बेकार .हम लोगों की संगत का आप पर कोई खराब असर तो नहीं पड़ने लगा ?'
वे बेचारी दोनों ओर से घिर जातीं ,साथ की टीचर्स मज़े लेती हँसती रहतीं
'आप सावधान रहिये , मन को कस के नियंत्रण में रखे रहिये .'
कभी उनसे समाधान मांगते 'पता नहीं ,सिर में दर्द क्यों होने लगा !हम तो एक हफ़्ते से ब्रह्मचारी हैं .'
'पति टूर पर गये लगते हैं ' दूसरी और जोड़ देरी ,' और चार दिन से तो हम भी ...'
बाकी साथिने हँसी रोकतीं -और रमा जी आँखें तरेरतीं .हम बेशर्मों पर कोई असर न होते देख लाचार झेंपी हुई सी मुस्करा कर अपनी खिसियाहट छिपा लेतीं .
इधर कुछ दनों से परेशान थीं .
'क्या हो गया आजकल आप चिन्तित लगती हैं .''
'इधर कुछ दिनों से अम्माँ की तबीयत खराब चल रही है .'
' अरे ,अम्माँ तो बहुत एक्टिव थीं ..क्या हुआ है ?'
'बताती तो हैं नहीं .कुछ दिनों से सिर में दर्द रहता था अब बहुत बढ़ गया .टेस्ट कराये हैं .'
हम लोगों को सुनकर दुख हुआ पर ललिता चुप न रह सकी उसने जड़ दिया , ' रमा जी, आप तो आदर्शवादी हैं .बेलाग बात कहने की हिम्मत है आपमें . पर हमलोगों से आप चाहे जो कुछ कह लीजिये ,माताजी से ये सब मत कहियेगा .'
घड़ों पानी पड़ गया हो जैसे उन पर रमा जी एकदम चुप ! धीरे से वहाँ से खिसक लीं .'
अब सोचती हूँ ,हमें उन्हें से ऐसी बेतुकी बातें नहीं करनी चाहिये थीं .उनकी अपनी मजबूरियाँ थीं ,
चार छोटी बहनें ब्याहने को ,पिता रिटायर हो चुके थे .पर तब इतना सब सोचने की ताब कहाँ थी अब सोचती हूँ तो लगता है- घर-बाहर के साथ वृद्ध होते माता-पिता और अन-ब्याही बहिनों की जुम्मेदारी उठाती रमा जी पर कितना बोझ पड़ता होगा. आदर्शवाद के आवरण में अपने को बहलाये रखना और ऊपर से हमलोगों की बातें सुनना उन पर क्या बीतती होगी.
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1 टिप्पणी:

  1. ''अब सोचती हूँ ,हमें उन्हें से ऐसी बेतुकी बातें नहीं करनी चाहिये थीं ।उनकी अपनी मजबूरियाँ थीं ,''

    जी..और मुझे भी बिलकुल अच्छा नहीं लगा ललिता जी का ये कहना रमा जी से.....:( ...आप कह नहीं सकते कि आपके साथ वाला इंसान किस स्तर पर कौन सी लड़ाई लड़ रहा है......?

    मैंने भी एक दफे एक ब्लड कैंसर के मरीज़ की माँ से ब्लड लेने देने पर ब्लड बैंक के नियम बाबत बहस की थी....बहस भी नहीं...एक दो चीज़ें समझानी चाहीं थीं......उनका बच्चा (Prahlaad) वार्ड में दम तोड़ रहा था...मैं भूल गयी थी कि मैं एक माँ से बात कर रहीं हूँ....जब तक एहसास होता..वे जा चुकीं थीं...गलती sudhaar ने और मुआफी के लिए मैं खुद bachche ke liye ब्लड bag लेकर गयी....वार्ड में अपने जूनियर को ब्लड थमा के भी आई...मगर मन का एक हिस्सा आज ४ साल हुए..अभी तक उसी वार्ड में है....क्यूंकि मैं प्रहलाद की माताजी से मुआफी नहीं मांग पायी..कारण..मेरी आँखों के आगे मेरा सहपाठी उसे मृत घोषित कर रहा था...और विक्षिप्त सरीखी उसकी माँ दीवार से लगी खड़ीं थीं....

    pata hai Pratibha ji...आपकी पोस्ट पढ़ के लगा मेरी चोरी किसी ने पकड़ ली.....मन स्वयं के लिए घृणा से भर गया एकदम......
    अपराध वही है...बस किरदार और गलती की गंभीरता बदल गए हैं.....मैं अपने मन की आत्मग्लानि आपके शब्दों से फिर महसूस कर रही हूँ........ललिता जी क्या सोच रहीं होंगी अच्छी तरह से समझ सकती हूँ....
    खैर,,,सिर्फ पोस्ट को पोस्ट के तौर पर पढूं...तो ...न ...ऐसे मैं नहीं पढ़ सकती बिना खुद को किसी शब्द से जोड़े...!!
    चलिए कुछ और पढ़ती हूँ...यहाँ बहुत संजीदा सा मौसम हो गया...

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