बुधवार, 16 जून 2010

नए लोक-शब्द

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अभी से सुनना-समझना शुरू कर दीजिए. नहीं तो पिछड़ जाएंगे .कुछ दिनों में ये शब्द साहित्यिक प्रयोगों में आने लगेंगे .क्योंकि पुराने तो विस्थापित होते जा रहे हैं ,लोगों को दुरूह लगने लगे हैं ,उनकी अर्थवत्तापर संकट आता जा रहा है ,और ये नये टटके शब्द जनभाषा के हैं ,साहित्य को जनभाषा में ला कर उसे जनता के लिए अति बोध-गम्य बनाने का प्रगतिशील विचार इन्हींको सिर-आँखों धरेगा .
इनका आाविष्कार हमारी कामवालियों ने किया है .घर में झाड़ू-पोंछा ,चौका बर्तन ,कपड़े धोना आदि काम ही नहीं सब देखती -समझती हैं .उनकी निरीक्षण क्षमता गज़ब की है और टीवी की कृपा से उनका मानसिक स्तर और विकसित होता जा रहा है ,रहन-सहन बोल-चाल सब पर दूरगामी प्रभाव !
आपने 'फर्बट' शब्द सुना है ?
हमन तो इनके मुख से बहुत दिनों से सुनते आ रहे हैं .
अपनी कोई साथिन जब उन्हें अपने से अधिक चाक-चौबस्त लगती है तो चट् मनोभाव प्रकट करती हैं ,-'अरे, उसकी मत पूछो ,क्या फर्वट है !'
इस युवापीढ़ी का अर्थ-बोध और मौलिक उद्भावनाएं गज़ब की हैं
फर्वट - इसका मतलब है फ़ारवर्ड !
और फिरंट का मतलब जानते हैं ?
जो अपने से आगे बढ़ी हुई लगे उसे कहेंगी 'फिरंट'(फ़्रंट से बना है)-इसमें थोड़ा तेज़-तर्राक होना भी शामिल है.
'टैम' ने समय को विस्थापित कर दिया है ।और माचिस ! दियासलाई हैं भी कोई अब ?
सलूका ,अँगिया आदि वस्त्र ग़ायब हो गये उनका स्थान ले लिया है ,ब्लाउज ,आदि ने।
हमारे एक परिचित हैं अच्छे पढ़े-लिखे उनका कहना है स्टोर्स में लेडीजों का माल भरा पड़ा है. एक दिन बोले हमारा पप्पू शूज़ों का बिज़नेस करेगा .
शूज़ों का बिज़नेस - यह भी सही है! शू का मतलब तो एक पाँव का एक जूता जब कि जूते हमेश दो होते है- शूज़ :और उसका बहुबचन शूज़ों ठीक तो है .
अब कोई प्याली में चाय तक नहीं पीता ,कप में पीते हैं ।
थालियों में कौन खाता हैं सब पलेट में खायेगे ,चाहे फ़ूलप्लेट हो या छोटी पलेट .
और हिन्दी भी बदल रही है अब तो
देखिए न अच्छे-पढ़े लिखे लोग सफ़ल लिखते हैं ? सफल लिख-बोल कर अपनी हेठी क्यों करें ?
अब मालिनें भी फूल नहीं 'फ़ूल' बेचती हैं -फ बोलने से जीभ में झटका लगता है फल नहीं फ़ल खाना सभ्यता का लक्षण है.
अंग्रेज़ी भाषा की तो बात ही मत पूछो ।अनपढ़ लोग, गाँव के वासी यहाँ तक कि महरी ,जमादारिन मालिन सबके सिर चढ़ कर बोल रही है ।
जो जनता बोले वही असली भाषा - आगे तो वही चलबे करेगी !
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2 टिप्‍पणियां:

  1. आपके इस लेख से पता लगता है की आप अपने आस पास होने वाली चीजों पर काफी ध्यान रखती हैं और मैं पहले भी कह चुका हूँ पर फिर कहता हूँ की मुझे आपके लिखने का अंदाज़ बहुत पसंद है| कभी फुर्सत हो तो हमारे ब्लॉग पर भी एक नज़र डालियेगा |

    http://jazbaattheemotions.blogspot.com/

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  2. हम्म...सही कहतीं हैं आप....खासकर फूल वाली बात बहुत ज़बरदस्त ..
    और अंग्रेजी के खुमार के लिए शब्द ही नहीं कि क्या कहा जाए इस पर....

    खैर,
    बहुत ही रोचक पोस्ट..पहले तो मज़ा आया..हंसी आई पढ़के...फिर बाद में लगा स्वयं पर ही हंस रही हूँ........'शिवखेडा साहब' की सिर्फ एक ही बात मुझे हमेशा अच्छी लगती है...''अगर हम समस्या का समाधान नहीं तो हम उसका हिस्सा हैं...''
    बधाई पोस्ट के लिए...

    shubh raatri !!

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