शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

भूखा -

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मेरा बेटा अपने छुटकन्ने-से भाँजे से लड़ रहा है .

बेटा कोई बच्चा नहीं 27 साल का बाकायदा सर्विस कर रहा इंजीनियर ,शादी भी हो चुकी है .

और मेरा नाती -3-4 साल का बच्चा ,अभी तुतला कर बोलता है .

वह कहता है ,'उठो यहाँ से .मेरी नानी हैं उनके पास मैं लेटूँगा .'

और मेरा बेटा आ लेटा है मेरे पास ,'मेरी माँ हैं मैं लेटूंगा. तुम जाओ अपनी मम्मी के पास !'

पर वह तो मुझ पर सिर्फ़ अपना अधिकार समझता है .

मामा से कह रहा है ,उसके कमरे की ओर इशारा कर के ,' वहां जाओ !'

'नहीं जाऊँगा ,मेरी माँ हैं. तुम जाओ अपनी मम्मी के पास.'

पर वह क्यों जाने लगा उसकी तो मम्मी की मम्मी हूँ  मैं ,दोहरा अधिकार !

 मुझे हँसी आ रही है .दोनों सही हैं मैं क्या बोलूँ?

एक तरफ़ एक तो दूसरी तरफ़ दूसरे को लिटा लूँ तो भी मुश्किल ,उसकी तरफ़ मुँह मत करो ,मेरी तरफ़ करो .

मूल तो अपना हई है ,पर ब्याज उससे भी प्यारा लगता है .

'जाओ वहां' वह फिर उसेकमरे का रास्ता दिखा रहा है .

'अरे, बेटा, वह बच्चा है , तुम्हीं रहने दो .'

'पर ये तो बराबर से लड़ता है माँ ,हमेशा सबके सामने भूखा,भूखा कहता है मुझसे.'

यह छुटक्का भी कुछ कम नहीं है .

मेरा बेटा किसी से ज़रा सा चिल्ला कर बोल दे तो ', हत् हत् हत्, भूखा कहने लगता है ,

पहले मेरे बेटे ने उसने विरोध किया फिर मुझसे शिकायत की ,'माँ ,देखो ये मुझसे भूखा कह रहा है!'
पर मैं क्या करूँ .इत्ता छोटा है इसे समझाऊँ कैसे

होता यह था कि मेरी बेटी की पहली संतान यही छुटक्का ,जब रात-बिरात रोना शुरू करता , तो वह खीझना-डाँटना शुरू कर देती .

मैं कहती ,'वह भूखा होगा इसलिये शोर मचा रहा है .'

'अरे माँ ,अभी तो दूध पिलाया है ,उसमें से भी छोड़ दिया .'

'ये बच्चे ऐसे ही झिंकाते हैं ,एक बार में पीते नहीं और ज़रा देर में फिर रोना शुरू ..'

मैं जानती हूँ यह सब झेले जो बैठी हूँ .

अरे ,बच्चे तो बच्चे ,यहाँ तो बड़े-बड़े ,भूखे होते हैं तो क्या रौद्र रूप दिखाते हैं !

मेरा यह बेटा छोटा था तब तो भूख लगने पर उपद्रव मचा देता था और अब भी ,जब खूब बड़ा हो गया है -पेट खाली होता है तो बात-बात पर उलझने लगता है .ज़रा-ज़रा बात पर लड़ जाता है .

मैं जानती हूँ न उसकी आदत !झटपट  खिला-पिला देती हूं और फिर सब ठीक !

तो मैंने कहा,' भूखा है इसलिये चिल्ला रहा है .'

सुन-सुन कर बच्चा अपने ढंग से समझने लगा .

मामा को चिल्लाते सुनता है तो कूद-कूद कर उससे 'भूखा-भूखा' कहता है .

वह चिढ़ कर मना करे तो,'हत् हत् हत् भूखा.' कहने लगता है .

और इसे शिकायत है कि ज़रा सा है और उसे' हत्-हत्' कर भूखा कह रहा है .

'जीजी देखो ,ये मुझसे भूखा कह रहा है .'

'मैं क्या करूँ भैया ,ये तो कन्नौज में पापाजी (अपने दादाजी) से भी .. '

आगे उसने बताया -

'एक बार तो हद्द कर दी इसने .

वहां पापाजी (बेटी के ससुर)किसी पर नाराज़ होकर चिल्ला रहे थे.

पहले तो यह देखता सुनता रहा फिर उनकी चारपाई पर चढ़ गया और उनकी ओर मुँह कर खड़ा हो कर उन पर चिल्लाने लगा,' भूखा,भूखा .'

वे रुक गये . तब वह भी चुप हो गया ,और जब वे फिर नाराज होकर अपनी बात कहने सगे तो

फिर वही उनके लिए,' भूखा,भूखा' कहना शुरू. .

उन्होंने मुझसे पूछा ,'ये क्या कह रहा है ?'

उसने फिर दोहरा दिया.

मैं कैसे बताऊँ !

उन्होंने फिर पूछा,'क्या कह रहा है यह?

'पता नहीं पापा जी ,जाने क्या बके जा रहा है .कहीं से सुन आया होगा .'

बड़ी मुश्किल से इसे बहला कर वहां से ले गई .'

वह भी बेचारी क्या करती !

मैंने तो देखा है उधिकतर बच्चे भूखे होने पर क्या उपद्रव मचाते हैं .
लड़ाई-झगड़ा ,मार-पीट तक पर उतारू  ,

 मेरा तो पोता भी ऐसा ही है .सबसे लड़ने पर आमादा हो जाता है और उदर पूर्ति होते ही परम संतोष. फिर मिल कर हँसना-खेलना शुरू .वही बात -पेट में पहुँचा चारा तो हँसने लगा बिचारा !'

सही कहा  है - 'बुभुक्षितम् किम् न करोति पापं .'
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रविवार, 10 अक्टूबर 2010

क्यों ?

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1.
समझ में नहीं आता कि स्त्री हमेशा विवश बनाये रखने की कोशिश क्यों की जाती है ,उसे परमुखापेक्षी देखने में शायद पुरुषोचित अहं की तृप्ति होती हो !
पुरुष का क्षेत्र जितना व्यापक हो उतना अच्छा .स्त्री का जितना सीमित हो सके कर दो .घर में सीमित  रहे .और पति की सेवा के अलावा और कुछ न जाने तो सर्वश्रेष्ठ !
स्त्री को आनन्द के रस से इसलये वंचित कर दिया कि एक बार यह स्वाद लगने के बाद संसार फीका लगने लगता है ।वह संसार में उलझी रहे और पुरुष मुक्ति का स्वाद ले सके इसलिये सारे संयम नियम ,मर्यादायें,उत्तरदायित्व उस पर लाद कर वह निश्चिंत होगया कि चलो दुनिया के सारे काम चलते रहेंगे सब-कुछ मेरा होगा और मैं मुक्त रहूँगा ।उसके के साथ रोना और आँसू क्यों जोड़ दिये गये हैं?सीता को रोते हुये दुःखी दिखाना ,मूवीज़ में ,कहानियों में हमेशा रोती धोती औरतें! ।माँ है ,तो रो रही है. पत्नी है, तो दुख सहन किये जा रही है,बहन है तो त्याग करना उस का कर्तव्य है .रोना और सहना उनकी नियति है क्यों हँसती हुई प्रसन्न महिलायें क्या अच्छी नहीं लगतीं ?
अगर संसार में रोने का ठेका स्त्री से ले लिया जाय और उसे हँसते हुये और प्रसन्न रहने की सुविधा दी जाय तो संसार अधिक सुन्दर अधिक संतुलित और मन-भावन हो जायेगा !
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2.

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अम्माँ जी खाना खा चुकी थीं. 
अब दाँत काम नहीं देते .ज़रा सी कड़ी चीज़ भी चबाते नहीं बनती फिर ये तो सुबह की बनी रोटियाँ .थाली में रखी-रखी और सूख गईँ थीं .कोरें अलग कर अम्माँजी ने बाकी रोटी दाल में भिगो कर 
उठीं तो थाली में रखी , सूखी कोरें हाथ में समेट कर चल दीं .

बहू ने तीक्ष्ण दृष्टि से देखा,' जे का अम्माँ जी ,रोटी की सूखी कोरें ,विनीता की अम्माँ को दिखाबे जाय रही हो ?''

झुर्रियों से भरा चेहरा उठा, बहू को देखा बोलीं ,.'नाहीं बहू,हम काहे को दिखाने लै जाएँगी?,ई हमसे चबाई नहीं जातीं सो निकाल कर रख दीं .अब बाहर चिरैयन को डाल देंगी .अन्न काहे फिंके ,किसी परानी के पेट में चला जाए .'