*
कानपुर शहर .चुन्नीगंज से फूलबाग़ जाना था -लंबा रास्ता .
टेम्पोवाला चल्ला-चिल्ला कर आवाज़ लगा रहा है
बैठ गई मैं भी .ज़रा देर में भर गया .चार सवारियाँ इधर ,चार उधर ,दो आगे ड्राइवर की साइड में -ठूँस-ठाँस कर सब को भर दिया उसने.
चलो थोड़ी देर की बात है!
टेम्पोवाले ने स्टार्ट किया और रिकार्ड ऑन कर दिया .फ़ुल वाल्यूम !
कान झनझना गए .साथ में जो महिला बैठी थीं स्कूल जा रही थीं ।उन्होने कान पर हाथ रख लिये .
सब चुप हैं कोई नहीं बोल रहा .एक तो खड़खड़ाता पुराना टेम्पो ,ऊपर से कानपुर की सड़कें .नगर-निगम की मनमानी की मारी ,चार दिन सुधरती तो आठ दिन टूट-बिखरतीं .केबिलवाले ,जल-मल वाले ,शादी ब्याह वगैरा के तंबू-शंबूवाले सब की मन-चाही तोड़फोड़ झेलतीं , उछाल-उछाल कर आकाश-पाताल की सैर करातीं अपने और साथ में सवारी के कल-पुर्ज़े भी डुलाते-बजाते हमेशा से ऐसी ही रही हैं क्या ?.ऊपर से चीख़ती हुई गाने की आवाज और रास्ते के हाहकारी चीख़-पुकार तो हैं ही ..
थोड़ी देर इंतज़ार किया कि शायद कोई कहे, फिर मैंने कहा ,'इससे कहें या तो वाल्यूम कम करे नहीं तो बंद कर दे ।'
वे बोलीं ,'कोई फ़ायदा नहीं , वह नहीं सुनेगा.ये.सब ऐसे ई करते हैं .हमी क्यों बोलें?'
सवारियाँ चिल्ला-चिल्ला कर बातें कर रही हैं .
'परेशानी तो सभी को हो रही है .चलो हमीं कहते है . '
' ना,ना .बिलकुल नहीं .कोई हमारी तरफ से नहीं बोलेगा, बल्कि सब मज़ा लेंगे कि बड़ा बनती हैं अपने आप को !'
'आप तो रोज़ ऐसे ही जाती होंगी ?सिर भन्ना जाता होगा ?'
'क्या करें ? जाना पड़ता है .हमारे यहाँ की आधी टीचर्स दूर से आती हैं.सब ऐसे ही शोर सुनती हुई आती हैं .कभी कभी तो ये लोग दूसरे के हार्न की आवाज़ भी नहीं सुनते । कल ही एक्सीडेंट होते होते बचा .'
'फिर भी कोई मना नहीं करता ?'
'कोई कहे तो बंद तो होता नहीं ऊपर से और मज़ाक बन जाता है .इसलिए
सब चुप रह जाते हैं , ज़रा देर की बात है ।कान पड़ी बात भी सुनाई नहीं देती क्या करें ?मजबूरी है .'
हाँ, जब सब यही करते हैं तो अच्छा हो या बुरा .सही हो या गलत. वही करना है ।वही होता रहेगा सदा सदा को .
पीछे- पीछे खुसुर-पुसुर होती है ,आपस में दूसरों की शिकायतें करते हैं,पर सामने कोई नहीं कुछ कहता ।सब को परेशानी है ।लेकिन हम क्या करें ,सब ऐसे ही करते हैं ।
उथल-पुथल मचती रही मन में .मैं कहूँ और वह टका सा जवाब दे दे तो ?कोई बोलेगा नहीं .मेरे ऊपर तरस खाते सब सहनशील, भले बने बैठे रहेंगे .
रहा नहीं जा रहा .देखी जायगी जो होयगा !
ड्राइवर मेरे पीछे था .मैं ज़रा मुड़ी ,'भइया ,ज़रा ये गाने का वाल्यूम थोड़ा कर कर देंगे ?'
उसने घूम कर देखा .सब मुझे ही देख रहे हैं .मैं सहज उसकी ओर देख रही हूँ.
'हाँ ,हाँ ,लीजिए!. चलो बंद ही कर देते हैं थोड़ी देर को .कुछ खराबी आ गई सो धीमा नहीं होता न! '
हे भगवान ,चैन की साँस ली मैंने !
सब ऐसे ही क्यों करते है ?
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कानपुर शहर .चुन्नीगंज से फूलबाग़ जाना था -लंबा रास्ता .
टेम्पोवाला चल्ला-चिल्ला कर आवाज़ लगा रहा है
बैठ गई मैं भी .ज़रा देर में भर गया .चार सवारियाँ इधर ,चार उधर ,दो आगे ड्राइवर की साइड में -ठूँस-ठाँस कर सब को भर दिया उसने.
चलो थोड़ी देर की बात है!
टेम्पोवाले ने स्टार्ट किया और रिकार्ड ऑन कर दिया .फ़ुल वाल्यूम !
कान झनझना गए .साथ में जो महिला बैठी थीं स्कूल जा रही थीं ।उन्होने कान पर हाथ रख लिये .
सब चुप हैं कोई नहीं बोल रहा .एक तो खड़खड़ाता पुराना टेम्पो ,ऊपर से कानपुर की सड़कें .नगर-निगम की मनमानी की मारी ,चार दिन सुधरती तो आठ दिन टूट-बिखरतीं .केबिलवाले ,जल-मल वाले ,शादी ब्याह वगैरा के तंबू-शंबूवाले सब की मन-चाही तोड़फोड़ झेलतीं , उछाल-उछाल कर आकाश-पाताल की सैर करातीं अपने और साथ में सवारी के कल-पुर्ज़े भी डुलाते-बजाते हमेशा से ऐसी ही रही हैं क्या ?.ऊपर से चीख़ती हुई गाने की आवाज और रास्ते के हाहकारी चीख़-पुकार तो हैं ही ..
थोड़ी देर इंतज़ार किया कि शायद कोई कहे, फिर मैंने कहा ,'इससे कहें या तो वाल्यूम कम करे नहीं तो बंद कर दे ।'
वे बोलीं ,'कोई फ़ायदा नहीं , वह नहीं सुनेगा.ये.सब ऐसे ई करते हैं .हमी क्यों बोलें?'
सवारियाँ चिल्ला-चिल्ला कर बातें कर रही हैं .
'परेशानी तो सभी को हो रही है .चलो हमीं कहते है . '
' ना,ना .बिलकुल नहीं .कोई हमारी तरफ से नहीं बोलेगा, बल्कि सब मज़ा लेंगे कि बड़ा बनती हैं अपने आप को !'
'आप तो रोज़ ऐसे ही जाती होंगी ?सिर भन्ना जाता होगा ?'
'क्या करें ? जाना पड़ता है .हमारे यहाँ की आधी टीचर्स दूर से आती हैं.सब ऐसे ही शोर सुनती हुई आती हैं .कभी कभी तो ये लोग दूसरे के हार्न की आवाज़ भी नहीं सुनते । कल ही एक्सीडेंट होते होते बचा .'
'फिर भी कोई मना नहीं करता ?'
'कोई कहे तो बंद तो होता नहीं ऊपर से और मज़ाक बन जाता है .इसलिए
सब चुप रह जाते हैं , ज़रा देर की बात है ।कान पड़ी बात भी सुनाई नहीं देती क्या करें ?मजबूरी है .'
हाँ, जब सब यही करते हैं तो अच्छा हो या बुरा .सही हो या गलत. वही करना है ।वही होता रहेगा सदा सदा को .
पीछे- पीछे खुसुर-पुसुर होती है ,आपस में दूसरों की शिकायतें करते हैं,पर सामने कोई नहीं कुछ कहता ।सब को परेशानी है ।लेकिन हम क्या करें ,सब ऐसे ही करते हैं ।
उथल-पुथल मचती रही मन में .मैं कहूँ और वह टका सा जवाब दे दे तो ?कोई बोलेगा नहीं .मेरे ऊपर तरस खाते सब सहनशील, भले बने बैठे रहेंगे .
रहा नहीं जा रहा .देखी जायगी जो होयगा !
ड्राइवर मेरे पीछे था .मैं ज़रा मुड़ी ,'भइया ,ज़रा ये गाने का वाल्यूम थोड़ा कर कर देंगे ?'
उसने घूम कर देखा .सब मुझे ही देख रहे हैं .मैं सहज उसकी ओर देख रही हूँ.
'हाँ ,हाँ ,लीजिए!. चलो बंद ही कर देते हैं थोड़ी देर को .कुछ खराबी आ गई सो धीमा नहीं होता न! '
हे भगवान ,चैन की साँस ली मैंने !
सब ऐसे ही क्यों करते है ?
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बहुत सही और रोज़मर्रा की जिंदगी से रूबरू कराती पोस्ट है |
जवाब देंहटाएंक्यूंकि प्रतिभा जी...ये भारत देश है....यहाँ सब सोचते तो अच्छा हैं..मगर उस काम को जब करने का वक़्त आता है..तब एक दूसरे का मुंह ताकना बेहद लाज़मी होता है...भाई...कोई आगे बढेगा तभी तो उसके कदम से सब कदम मिलायेंगे...यहाँ आगाज़ कोई नहीं करना चाहता.....मगर चाहते सब हैं कि शुरुआत हो जाये.....
जवाब देंहटाएंअच्छा उदारहण उठाया है प्रतिभा जी...हर गली कूचे में ये स्थिति देखने मिल जाती है.......मगर जबसे लगे रहो मुन्ना भाई आई है...तबसे फिलहाल राहत है ज़रा...लोग ''गांधीगिरी'' दिखने के लिए ही सही....मदद करने आगे आते हैं...
रंग दे बसंती' फिल्म का एक संवाद याद आ रहा है....'' कोई भी देश अपने आप नहीं सुधरता..उसे सुधारना पड़ता है.....या तो चुपचाप देखते रहो..या ज़िम्मेदारी उठाओ..''
वैसे व्यक्तिगत तौर पर मैं भी मानती हूँ....अच्छे से आदर से शांति से आप अपनी बात कहीं भी रख सकते हैं.....बस का चालक हो...या किसी मोहल्ले का 'भाई'...पहले तो सब इंसान ही हैं....अपने हिस्से का सम्मान तो सभी चाहते हैं.....:)
एक बात कहूँगी...ये भानमती जी सोचती और लिखतीं बड़ा अच्छा अच्छा और मजेदार है......बात की बात कह देतीं हैं...और जनहित में जारी संदेश का संदेश.....:)
खैर...
शुभकामनाएं!!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .
man ki kashmokash aur us se logo ki pahal n karne ki niyati ko ukerti sidhi sadhi saral si bhanumati ki baat kahne ka tarika acchha laga.
जवाब देंहटाएंye blog apke profile par to nahi dikh raha. bhavishy me kaise pahuncha jaye is blog par bataiyega.
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी के अन्य ब्लॉग तक पहुँचने के लिए उनके ब्लॉग पर ऊपर लिंक्स लगे हुये हैं ...वहाँ से आप पहुँच सकती हैं ।
हटाएंअनामिका,
हटाएंजब शुरू में ब्लाग लेखन किया तो ,मैटर बहुत इकट्ठा था .व्लाग का अंदाज़ नहीं था ,किताबों का था .उसी हिसाब से कई ब्लाग बना डाले
बाद में पाठकों की परेशानी पता लगी .वे मुश्किल में कि कब कहां देखें .तो मैंने दो ब्लाग(लालित्यम् और शिप्रा की लहरें ) सक्रिय रख कर शेष ऐसे ही जमा रहने दिये .
अब जब कुछ-कुछ कंप्यूटर समझ में आने लगा तो गद्य की विधाओंवाले ब्लागों के लिंक ,'लालित्यम् ' पर और काव्य की विधाओं के 'शिप्रा की लहरों' पर डाल दिये .
वहीं से सब मिल जायेंगे .सारा पहले का काम उन्हीं में है .न मिले तो बताना अलग से उन के लिंक भेज दूँगी .
रुचि लेने के लिये आभार !
गलत बात को भी लोग यही सोच कर प्रश्रय देते हैं कि सब ऐसा ही करते हैं ....किसी को तो सुधार के लिए कदम बढ़ाना ही होगा .... सार्थक संदेश देती रचना ।
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी मेरी टिप्पणी स्पैम में चली गयी है .... उसे आज़ाद कीजिये .... उसके लिए आपको डैश बोर्ड में जाना होगा और कमेंट्स पर क्लिक करें .... वहाँ स्पैम पर क्लिक करके देखिये और उसे नॉट स्पैम कर दीजिएगा । आभार
जवाब देंहटाएंरोज़मर्रा की जिंदगी से रूबरू कराती पोस्ट.बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
जवाब देंहटाएंऔर बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
बहुत अच्छा लेखन है आपका प्रतिभा दी |हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंआशा